मीर ताक़ी मीर की सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल ||Meer Taqi Meer Best Ghazal in Hindi||उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया || Urdu Sad Poetry
Meer Taqi Meer Best Ghazal in Hindi
उलटी हो गई सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आखिर काम तमाम किया
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मुंड
यानी रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया
हर्फ नहीं जान-बख़्शी में उस की खूबी अपनी किस्मत की
हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया
नाहक हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुक़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं हमको अबस बदनाम किया
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तीखे सब का तुझ को इमाम किया
सरज़द हम से बेअदबी तो वहशत में भी कम ही हुई
कोसों उस की ओर गए पर सजदा हर हर गाम किया
किस का काबा कैसा किबला कौन हरम है क्या एहराम
कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया
शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मैखाने में
जुब्बा खिर्का कुर्ता टोपी मस्ती में इनाम किया
काश अब बुरक़ा मुंह से उठा दे वरना फिर क्या हासिल
यहाँ के सफेद और सियाह में हम को दाखिल जो है सो इतना है
रात को रो-रो सुबह किया या दिन को जूँ-तूँ शाम किया।
सुबह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी
रुख से गुल को मोल लिया कामत से सर्व ग़ुलाम किया।
साएद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में लाकर छोड़ दिए
भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया।
काम हुए हैं सारे ज़ाएआ हर सात की समाजत से
इस्तिग़ना की चौगुनी उन ने जूँ-जूँ मैं इब्राम किया।
ऐसे आहू-ए-रमख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सहर किया एजाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया।
मीर के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो, उन ने तो
कश्का खींचा दैर में बैठा, कब का तर्क इस्लाम किया।
मीर ताक़ी मीर
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